कविता विचार तेरे शहर के July 7, 2013 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जब भी गये बंद मिले द्वार तेरे शहर के , करते हम कैसे भला दीदार तेरे शहर के । अमुआ के बाग में उल्लुओं का बसेरा है , ठीक नहीं लगते हैं आसार तेरे शहर के। दिलों पर खंजर के निशां लिये मिले लोग , तूं ही बता कैसे करें एतबार तेरे […] Read more » विचार तेरे शहर के