कविता “स्वपन-परी” October 5, 2014 by रोहित श्रीवास्तव | Leave a Comment जब जब मेरा “चंचलरूपी” मन भवरें की भांति …… सपनों की “पुष्प-नागरी” मे मँडराता खुद को कभी इधर…… कभी उधर….. “बदनाम” तन्हा गलियो मे बिलकुल अकेला पाता मन-मंदिर मे बसी “अनदेखी-अनजानी” वो सपनों के संसार की “स्वपन-सुंदरी” जिसमे “सौंदर्यता” और “कोमार्यता” “कूट-कूट” के भरी….. सच कहता हूँ मे…. सच कहता हूँ मे….. वो […] Read more » “स्वपन-परी”