व्यंग्य व्यंग्य: हैसियत नजरबट्टू की अन्यथा सड़के ही सोने की होती November 15, 2010 / December 19, 2011 by रामस्वरूप रावतसरे | 1 Comment on व्यंग्य: हैसियत नजरबट्टू की अन्यथा सड़के ही सोने की होती एक बार किसी कारण वश मुझे नगर परिषद जाना पडा । वहां कुछ लोग बैठे थे तभी एक सज्जन आये ,और उन्होने पहले से बैठे अपने परिचित एवं स्वजातीय एक सज्जन से पूछा ’’आज यहां कैसे बैठे हो?’’पहले से बैठे सज्जन ने कहा कि ’’वे अपने मौहल्ले की सडक के निर्माण का प्रस्ताव लेकर आये […] Read more » golden roads in India व्यंग्य सड़के ही सोने की होती हैसियत नजरबट्टू की