कविता हम जीत कर भी हार गये! March 13, 2015 by बीनू भटनागर | 1 Comment on हम जीत कर भी हार गये! जब कुछ अनचाहा सा, अप्रत्याशित सा घट जाता है, जिसकी कल्पना भी न की हो, साथ चलते चलते लोग, टकरा जाते हैं। जो दिखता है, या दिखाया जाता है, वो हमेशा सच नहीं होता। सच पर्दे मे छुपाया जाता है। थोड़ा सा वो ग़लत थे, थोड़ा सा हम ग़लत होंगे, ये भाव कहीं खोजाता है। […] Read more » हम जीत कर भी हार गये!