गजल हर एक पल कल-कल किए June 30, 2015 / June 30, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment हर एक पल कल-कल किए, भूमा प्रवाहित हो रहा; सुर छन्द में वह खो रहा, आनन्द अनुपम दे रहा । सृष्टि सु-योगित संस्कृत, सुरभित सुमंगल संचरित; वर साम्य सौरभ संतुलित, हो प्रफुल्लित धावत चकित । आभास उर अणु पा रहा, कोमल पपीहा गा रहा; हर धेनु प्रणवित हो रही, हर रेणु पुलकित कर रही । […] Read more » हर एक पल कल-कल किए