व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : टोपी बहादुर – पंडित सुरेश नीरव September 24, 2011 / December 6, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य : टोपी बहादुर – पंडित सुरेश नीरव जिन्हें टोपी पहनने का शौक होता है वो टोपी नहीं पहना करते। टोपी पहनानेवाले ऐसे सूरमा अच्छे-अच्छों को टोपी पहना दिया करते हैं। देखिए न अपने गांधीजी ने कभी भूल से भी टोपी नहीं पहनी मगर एक-दो को नहीं पूरे देश को उन्होंने टोपी पहना दी। और उस पर भी जलवा ये कि टोपी कहलाई […] Read more » Hat Man Pandit Suresh Nirav Satire टोपी बहादुर पंडित सुरेश नीरव हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ मेट्रों में आत्मा का सफर July 24, 2011 / December 8, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य/ मेट्रों में आत्मा का सफर पंडित सुरेश नीरव सब शरीर धरे के दंड हैं। इसलिए जब भी किसी स्वर्गीय का भेजे में खयाल आता है तब-तब मैं हाइली इन्फलेमेबल ईर्ष्या से भर जाता हूं। सोचता हूं कितनी मस्ती में घूमती हैं ये आत्माएं। जिंदगी का असली मजा तो दुनिया में ये आत्माएं ही उठाती हैं। न गर्मी की चिपचिप न […] Read more » vyangya हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : रपट कूकर कॉलौनी की November 29, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 2 Comments on हास्य-व्यंग्य : रपट कूकर कॉलौनी की मैं नगर के सबसे पॉश इलाके में रहता हूं। चाय के उत्पादन से लिए जैसे दार्जिलिंग और बरसात के मामले में चेरापूंजी की प्रतिष्ठा है,ठीक वैसे ही कुत्तों के मामले में हमारी कॉलौनी का भी अखिल भारतीय रुतबा है। एक-से-एक उच्चवर्णी और कुलीन गोत्रों के कुत्ते इस कूकर कॉलौनी में निवास करते हैं। इसलिए ही […] Read more » vyangya पंडित सुरेश नीरव हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य: भवन निर्माण का कच्चामाल November 18, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य: भवन निर्माण का कच्चामाल भारत देश ऋषि और कृषि प्रधान देश है। जब ऋषियों की फसल कृषि से भी अधिक होने लगी तो मजबूरी में ऋषियों ने भी कृषि कार्य शुरू कर दिया। इस खेती-बाड़ी के चक्कर में न जाने आजतक कितने ऋषि खेत रहे यह शोध का एक पक्ष है, हमारे ऋषियों का। मगर एक दूसरा पक्ष भी […] Read more » raw material in house building पंडित सुरेश नीरव हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : शोकसभा का कुटीर उद्योग November 16, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment आज सुबह-सुबह शोकसभानंदजी का हमारे मोबाइल पर अचानक हमला हुआ। मैं-तो-मैं, मेरा मोबाइल भी आनेवाली आशंका के भय से कराह उठा। शोकसभानंदजी की हाबी है उत्साहपूर्वक शोकसभा आयोजित करना। हर क्षण वह तैयार बैठे रहते हैं कि इधर किसी की खबर आए और उधर वे तड़ से अपनी शोकसभा का कुटीर उद्योग शुरूं करें। वैसे […] Read more » Requiem of a cottage industry पंडित सुरेश नीरव शोकसभा का कुटीर उद्योग हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : नारी सशक्तीकरण वर्सेज पुरुष सशक्तीकरण November 15, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 4 Comments on हास्य-व्यंग्य : नारी सशक्तीकरण वर्सेज पुरुष सशक्तीकरण नारी सशक्तीकरण पर गोष्ठी करने का फैशन समकालीन हिंदी साहित्य की आज सबसे बड़ी उत्सवधर्मिता है। स्त्री-विमर्श के सैंकड़ों केन्द्र आज साहित्य में दिन-रात सक्रिय हैं। जगह-जगह काउंटर सजे हुए हैं। गौरतलब खासियत यह है कि इन जलसों में सबसे ज्यादा भागीदारी पुरुषों की होती है। जैसे मद्यनिषेद्य गोष्ठी में पीने के शौकीन लोग वहां […] Read more » men empowerment Women's empowerment नारी सशक्तीकरण पंडित सुरेश नीरव पुरुष सशक्तीकरण हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : झगड़े का एजेंड़ा November 10, 2010 / December 20, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य : झगड़े का एजेंड़ा कल सबह-सबह दरवाजे पर घंटी बजी। मुझे झुंझलाहट हुई कि इतनी सुबह-सुबह कौन मेरे घर सिधार गया। सोचा शायद दूधवाला हो। मैं दूध का बर्तन लिए लपककर दरवाजा खोलता हूं। मगर दिन का भ्रूणावस्था में ही सत्यानाश करनेवाले सज्जन पारंपरिक शैली के दूधवाले नहीं थे।. वैसे थे वे भी दूधवाले ही। वे मुझे दूध देने […] Read more » vyangya पंडित सुरेश नीरव हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : माल बनाम इज्जत – इज्जत बनाम माल November 8, 2010 / December 20, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment एक समय था हमारे देश में, जब लोग इज्जतदार हुआ करते थे। आजकल लोग मालदार होते हैं। इज्जत उन्हें बतौर गिफ्ट-हैंपर माल के साथ फ्री मिल जाती है। इसलिए लोग अब माल के पीछे भागते हैं। इज्जत के पीछे नहीं। आज के चलन में जब बेचारी इज्जत खुद ही पीछे रह गई हो तो उसके […] Read more » vyangya पंडित सुरेश नीरव हास्य-व्यंग्य