दोहे हिम आच्छादित धरती रहते ! February 7, 2020 / February 7, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment हिम आच्छादित धरती रहते, हिय वसंत हम कितने देखे ! भावों से भास्वर जगती पै, आयामों के पहरे निरखे ! सिमटे मिटे समाये कितने, अटके खटके चटके कितने; चोट खसोटों कितने रोये, आहट पाए कितने सोये ! खुल कर खिल कितने ना पाए, रूप दिखा ना कितने पाए; मन की खोह खोज ना पाए, तन […] Read more » हिम आच्छादित धरती रहते !