कविता साहित्य है नाट्यशाला विश्व यह ! June 18, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment है नाट्यशाला विश्व यह, अभिनय अनेकों चल रहे; हैं जीव कितने पल रहे, औ मंच कितने सज रहे ! रंग रूप मन कितने विलग, नाटक जुटे खट-पट किए; पट बदलते नट नाचते, रुख़ नियन्ता लख बदलते ! उर भाँपते सुर काँपते, संसार सागर सरकते; निशि दिवस कर्मों में रसे, रचना के रस में हैं लसे […] Read more » नाटक नियन्ता के अनंत ! हैं कीट कितने विचरते ! है नाट्यशाला विश्व यह !