कविता अंधेरे रास्तों पर September 9, 2014 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment जीवन में क्यों कोई राह नजर नहीं आती है ? हर राह पर क्यों नई परेशानी चली आती है ? जब जब चाहा भूल जाऊं अपनी उलझनों को तब तब एक और नई उलझन मिल जाती है। खुलकर जीना और हंसना मैं भी चाहती हूं पर ज़िन्दगी हर बार ही बेवजह रुला जाती है। पूछना […] Read more » अंधेरे रास्तों पर