गजल अनुभूत करना चाहते July 2, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment अनुभूत करना चाहते अनुभूत करना चाहते, कब किसी की है मानते; ना जीव सुनना चाहते, कर के स्वयं ही समझते ! ज्यों वाल बिन अग्नि छुए, माँ की कहाँ है मानता; जब ताप को पहचानता, तब दूर रहना जानता । एक बार जब कर गुज़रता, कहना किसी का मानता; सुनना किसी की चाहता, सम्मान करना […] Read more » अनुभूत करना चाहते