गजल विविधा अपनों से भरी दुनियाँ August 3, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १५०८०१) अपनों से भरी दुनियाँ, मगर अपना यहाँ कोंन; सपनों में सभी फिरते, समझ हर किसी को गौण ! कितने रहे हैं कोंण, हरेक मन के द्रष्टिकोंण; ना पा सका है चैन, तके सृष्टि प्रलोभन ! अधरों पे धरा मौन, कभी निरख कर नयन; आया समझ में कोई कभी, जब थे सुने वैन ! […] Read more » अपनों से भरी दुनियाँ