कविता साहित्य अभिशप्त March 15, 2016 / March 17, 2016 by डॉ. प्रतिभा सक्सेना | 3 Comments on अभिशप्त रात का था धुँधलका , सिर्फ़ तारों की छाँह । मैंने देखा – मन्दिर से निकल कर एक छायामूर्ति चली जा रही है विजन वन की ओर । आश्चर्यचकित मैंने पूछा, ” देवि ! आप कौन हैं ? रात्रि के इस सुनसान प्रहर में अकेली कहाँ जा रही हैं ? ” * वह चौंक गई, […] Read more » abhishapt poem by Dr. Pratibha saksena अभिशप्त अयोध्या अभिशप्त है