कविता अव्यक्त चाँद July 8, 2013 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment अपनी पूरी व्याकुलता और बैचेनी के साथ किसी पूर्णिमा में चाँद उतर आता था साफ़ नर्म हथेली पर अपनी बोल भर लेनें की क्षमता के साथ. चाँद अभिव्यक्त भी न कर पाता था अपनें आप को कि उसकी मर्म स्पर्शी आँखों में होनें लगती थी स्पर्श की कसैली सुरसुराहट दबे पाँव उसकी व्याकुलता भी […] Read more » अव्यक्त चाँद