कविता आज कितनी कल्पनाएँ! November 12, 2020 / November 12, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment आज कितनी कल्पनाएँ, और अगणित ज्योत्सनाएँ; मुझे मग दिखला रहीं हैं, गगन भास्वर कर रहीं हैं! कल्प की मीमांसाएँ, अल्प की उर अल्पनाएँ; अभीप्साएँ शाँत की हैं, प्रदीप्तित प्राणों को की हैं! प्रश्रयों में बिन पले वे, अश्रुओं को सुर दिईं हैं; आत्म की हर ओज धारा, धवलता ले कर बढ़ी है! ध्यान की हर […] Read more » आज कितनी कल्पनाएँ!