कविता आलिंगन September 19, 2020 / September 19, 2020 by आलोक कौशिक | Leave a Comment पृथक् थी प्रकृति हमारीभिन्न था एक-दूसरे से श्रमईंट के जैसी सख़्त थी वोऔर मैं था सीमेंट-सा नरम भूख थी उसको केवल भावों कीमैं था जन्मों-से प्रेम का प्यासाजगत् बोले जाति-धर्म की बोलीहम समझते थे प्यार की भाषा प्रेम अपार था हम दोनों में मगरना जाने क्यों नहीं होता था हमारा मिलनपड़ा प्रेम का जल ज्यों […] Read more » आलिंगन