कविता इक नया उत्कर्ष लाने जा रहा हूं February 18, 2015 by अरुण तिवारी | Leave a Comment आज रेगिस्तान में भी सावणी बरसात आई, मेघ डोल्या, सगुन बोल्या, मानसां का यह समंदर बढ चला आगे ही आगे राह छोङो, पंथ रोको मत, इक नया उत्कर्ष लाने जा रहा हूं । मृत पङे थे हाथ जो उन्हे लहराने जा रहा हूं। गैर की बंधक पङी तकदीर खुद छुङाने जा रहा हूं । गैर […] Read more » इक नया उत्कर्ष लाने जा रहा हूं