गजल साहित्य उर के उफानों में ! April 10, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment सकल सिकुड़न गात अकड़न, छोड़ सब संकोच जाती; मानसिक परिधि परे जा, वृत्तियाँ मृदु मधुर होती ! Read more » उर के उफानों में !