साहित्य ऊर्ध्व हर विन्दु रहा अवनी तल ! February 10, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment ऊर्ध्व हर विन्दु रहा अवनी तल, गोल आकार हुआ प्रति-सम चल; जीव उत्तिष्ट शिखर हर बैठा, रेणु कण भी प्रत्येक है एेंठा ! कम कहाँ किसी से रहा कोई, लगता पृथ्वी पति है हर कोई; देख ना पाता कौन इधर उधर, समझता स्वयं को महा भूधर ! अधर फैला हुआ है शून्य तिमिर, घूमते पिण्ड […] Read more » ऊर्ध्व हर विन्दु रहा अवनी तल !