कविता साहित्य कभी कुछ भी नज़र नहीं आए ! October 8, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment कभी कुछ भी नज़र नहीं आए ! शिकागो के गगन से कभी कुछ भी नज़र नहीं आए, धुँधलका आसमान में छा जाए; श्वेत बादल बिछे से नभ पाएँ, व्योम में धूप सी नज़र आए ! ज्योति सम-रस सी रमी मन भाये, मेघ लीला किए यों भरमाएँ; धरा से देख यह कहाँ पायें, रुचिर […] Read more » कभी कुछ भी नज़र नहीं आए !