दोहे कभी चल पड़ते हैं हम सर छत्र धारे ! July 8, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment कभी चल पड़ते हैं हम सर छत्र धारे, छोड़ चल देते कभी सारे नज़ारे; प्रीति की कलिका कभी चलते सँवारे, सुर लिए कोई कभी रहते किनारे ! ज़माने की भीड़ में उर को उबारे, हिय लिए आनन्द की अभिनव सी धारें; भास्वर भव सुरभि की अनुपम घटाएँ, विश्व विच व्यापक विलोके चिर विधाएँ ! […] Read more » कभी चल पड़ते हैं हम सर छत्र धारे !