कविता कविता:अपने ही कमरे मेँ– मोतीलाल May 13, 2012 / May 13, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment एक विस्मृत जर्जर कमरे मेँ मै गिर जाता हूँ और गुजरता हूँ नम तंतुओँ के बीच से नष्ट हो चुकी चीजोँ के बीच जैसे मवेशियाँ चरते होँ अपने चारागाह मेँ मैँ इस तीखे माहौल मेँ मरणासन्न गंधोँ की लहरोँ के सामने महसूसता हूँ उन हरे पत्तोँ की सरसराहट जो अंधेरे बरामदोँ मेँ कहीँ किसी […] Read more » poem by motilal कविता:अपने ही कमरे मेँ