कविता
कविता-चींटी
/ by बीनू भटनागर
चींटी मिश्री के इक दाने को, लाखों चलीं उठाने को, अपने घर ले जाने को, ऐसा संगठन नहीं मिलता, इंसानो को। ये हैं छोटी छोटी चींटी, श्रम करती हैं, मिल बाँट कर खाने को। ये सिखा सकती हैं, बहुत कुछ इंसानो को। कुशल प्रबंधन, निःस्वार्थ सेवा, गिरकर उठना, कभी न थकना, महनत करना, […]
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