कविता
कुछ बात है यार की हस्ती में …
/ by मनीष मंजुल
-मनीष मंजुल- इस छप्पन इंच के सीने में, कोई ऐसी लाट दहकती है, कुछ बात है यार की हस्ती में, यूं जनता जान छिड़कती है! कभी गौरी ने कभी गोरों ने, फिर लूटा घर के चोरों ने छोड़ों बुज़दिल गद्दारों को, ले आओ राणों, सरदारों को मुझे सम्हाल धरती के लाल, ये भारत मां सिसकती है, कुछ बात […]
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