कविता साहित्य खड़े जब अपने पैर हो जाते ! January 15, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment खड़े जब अपने पैर हो जाते, आत्म विश्वास से हैं भर जाते; सिहर हम मन ही मन में हैं जाते, अजब अनुभूति औ खुशी पाते ! डरते डरते ही हम ये कर पाते, झिझकते सोचते कभी होते; जमा जब अपने पैर हम लेते, झाँक औरों की आँख भी लेते ! हुई उपलब्धि हम समझ लेते, […] Read more » खड़े जब अपने पैर हो जाते !