कविता
तीन कवितायें: पानी, खनन और नदी जोङ
/ by अरुण तिवारी
अरुण तिवारी पानी हाय! समय ये कैसा आया, मोल बिका कुदरत का पानी। विज्ञान चन्द्रमा पर जा पहुंचा, धरा पे प्यासे पशु-नर-नारी। समय बेढंगा, अब तो चेतो, मार रहा क्यों पैर कुल्हाङी ? गर रुक न सकी, बारिश की बूंदें, रुक जायेगी जीवन नाङी। रीत गये गर कुंए-पोखर, सिकुङ गईं गर नदियां सारी। नहीं […]
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