कविता व्यंग्य खाने में कैसा शर्म September 18, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा कसमें वादे निभायेंगे न हम मिलकर खायेंगे जनम जनम जनता ने चुनकर भेजा है चुन- चुनकर खायेंगे पांच साल बाद खाने का कारण विस्तार से उन्हें बतायेंगे कसमें वादे निभायेंगे न हम मिलकर खायेंगे जनम जनम हीरा-मोती, सोना-चांदी तो है ही बस थोड़ा और रुक जाइये जंगल,जमीन के साथ साथ […] Read more » खाने में कैसा शर्म