गजल गज़ल:समदर्शिता– सत्येंद्र गुप्ता July 6, 2012 / July 5, 2012 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment कोई अर्श पे कोई फर्श पे, ये तुम्हारी दुनिया अजीब है कहते इसे कोई कर्मफल, कोई कह रहा है कि नसीब है यदि है नसीब तो इस कदर, तूने क्यों लिखा ऐ मेरे खुदा समदर्शिता छूटी कहाँ, क्यों अमीर कोई गरीब है कहते कि जग का पिता है तू, सारे कर्म तेरे अधीन […] Read more » गज़ल:समदर्शिता गज़ल:समदर्शिता– सत्येंद्र गुप्ता