कविता गुनगुनाती हवा September 19, 2014 by लक्ष्मी जायसवाल | 2 Comments on गुनगुनाती हवा ये गुनगुनाती हवा चुपके से जाने क्या कहकर चली जाती है। वक़्त हो चाहे कोई भी हर समय किसी का संदेशा दे जाती है। सुबह का सर्द मौसम और ठंडी हवा का झोंका किसी की याद दिला जाती है। दोपहर की तपती धूप और हवा की तल्खी दर्द की थपकी दे जाती है। शाम का […] Read more » गुनगुनाती हवा