कविता
गुरुर्ब्रह्मा – एक स्तुति
/ by आलोक कौशिक
गुरुर्ब्रह्मा जगत्पिता सदा,गुरुर्विष्णुः पथदर्शिता व्रता।गुरुर्देवो हरिः शिवो यथा,नमस्तस्मै गुरोः नमः सदा॥ ज्ञानदीपः तमोहरः प्रभुः,मौनवाणी रसाश्रु जलभरः।शिष्यजीवन दिगंतविस्तरः,प्रेमपाथेय धर्मचिन्मयः॥ शब्दसूत्रविवेचनैकधा,वेदमूलं समस्तशास्त्रधा।चित्तनिर्मल बनाय जो भला,वहै गुरुवर, समस्तभावला॥ न सखा, न पिता, न मातरः,गुरुवर्यं समं न चापरः।सत्पथं जो दिखाय संसृते,पूर्णिमा पर प्रणाम भावभरे॥ :- आलोक कौशिक
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