कविता
जाए अब किस ओर॥
/ by डॉ. सत्यवान सौरभ
दीये से बाती रुठी, बन बैठी है सौत।देख रहा मैं आजकल, आशाओं की मौत॥ अपनों से जिनकी नहीं, बनती ‘सौरभ’ बात।ढूँढ रहे वह आजकल, गैरों में औक़ात॥ चूल्हा ठंडा है पड़ा, लगी भूख की आग।कौन सुने है आजकल, मजलूमों के राग॥ देख रहें हम आजकल, ये कैसा जूनून।जात-धर्म के नाम पर, बहे खून ही खून॥ […]
Read more »