जाए अब किस ओर॥


दीये से बाती रुठी, बन बैठी है सौत।
देख रहा मैं आजकल, आशाओं की मौत॥

अपनों से जिनकी नहीं, बनती ‘सौरभ’ बात।
ढूँढ रहे वह आजकल, गैरों में औक़ात॥

चूल्हा ठंडा है पड़ा, लगी भूख की आग।
कौन सुने है आजकल, मजलूमों के राग॥

देख रहें हम आजकल, ये कैसा जूनून।
जात-धर्म के नाम पर, बहे खून ही खून॥

धूल आजकल फांकता, दादी का संदूक।
बच्चों को अच्छी लगे, अब घर में बन्दूक॥

घूम रहे हैं आजकल, गली-गली में चोर।
खड़ा-मुसाफिर सोचता, जाए अब किस ओर॥

नेता जी है आजकल, गिनता किसके नोट।
अक्सर ये है पूछता, मुझसे मेरा वोट

-डॉo सत्यवान सौरभ

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