दोहे जागरण जो भी रहे! June 9, 2020 / June 9, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment जागरण जो भी रहे, जग बगिया, पुष्प जो भी थे खिले, मन डलिया; जन्मीं जो भी थीं रहीं, सुर कलियाँ; उर में जो भी थीं रमीं, स्वर ध्वनियाँ! प्रणेता रचयिता स्वयंभू थे, स्वयंवर रचे स्वयं वे ही थे; वेग संवेग त्वरण वे ही दिए, डाँटे डपटे कभी थे वे ही किए! राग रंग हमारे वे […] Read more » जागरण जो भी रहे!