कविता “आँखे, झरोखें और उष्मा” March 3, 2013 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment कुछ आँखें थी सपनों को भरे अपने आगोश में. कुछ झरोखें थे जो पलकों के साथ हो लेते थे यहाँ वहां. आँखें झरोखों से आती किरणों में अक्सर तलाशती थी उष्मा को. बर्फ हो गए सपनों के संसार में उष्मा की छड़ी लिए चल पड़ती थी आँखें और बर्फ से करनें लगती थी वो संघर्ष […] Read more » “आँखे झरोखें और उष्मा”