कविता साहित्य ढ़ूँढ़ने में लगाया हर कोई ! January 29, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment ढ़ूँढ़ने में लगाया हर कोई, बना ऋषि घुमाया है हर कोई; ख़ुद छिपा झाँकता हृदय हर ही, कराता खोज स्वयं अपनी ही ! पूर्ण है पूर्ण से प्रकट होता, चूर्ण में भी तो पूर्ण ही होता; घूर्ण भी पूर्ण में मिला देता, रहस्य सृष्टि का समझ आता ! कभी मन द्रष्टि की सतह खोता, कभी […] Read more » ढ़ूँढ़ने में लगाया हर कोई !