कविता साहित्य तुम्हारी हर ख्वाहिशें October 5, 2017 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment अर्पण जैन ‘अविचल’ हर ख्वाब तेरे सिरहाने रख दुँ, जैसे चांद के पास सारी चांदनी बिखरते हुए अशकार समेट लूं, जैसे शायरी से मिलकर बनती है गजल कुछ खिलौनों-सी जिद है जिन्दगी, जैसे बचपन की गुड़िया की रसोई फर्श पर फिसलते मेरे इश्तेहार जैसे स्याही के बिखरने से बिगड़ता कागज […] Read more » तुम्हारी हर ख्वाहिशें