अर्पण जैन ‘अविचल’
हर ख्वाब तेरे सिरहाने रख दुँ,
जैसे चांद के पास सारी चांदनी
बिखरते हुए अशकार समेट लूं,
जैसे शायरी से मिलकर बनती है गजल
कुछ खिलौनों-सी जिद है जिन्दगी,
जैसे बचपन की गुड़िया की रसोई
फर्श पर फिसलते मेरे इश्तेहार
जैसे स्याही के बिखरने से बिगड़ता कागज
हर बुंद में पुराने किस्से हजारों है
जैसे हर किस्सा ही मानो एक किताब
ले आऊ मंदिर की घंटीयों के प्रेम गीत
जैसे स्वरों के मिल जाने से बनता संगीत
कागज पर बिखरते हर हर्फ संभाल लूं
जैसे हर वर्ण से बन जाए एक गूंज
संभालना चाहता हूँ ‘अवि’ तुम्हारे हर रंग
जैसे विष्णु ने थामा है रमणा का हाथ….
हर ख्वाब तेरे सिरहाने रख दुँ,
जैसे चांद के पास सारी चांदनी