गजल साहित्य चुपचाप सा सुनसान सा ! June 14, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment चुपचाप सा सुनसान सा ! चुपचाप सा सुनसान सा, मेरा जहान है लग रहा; ना कह कहे चुलबुला-पन, इतना नज़र आ पा रहा ! वाला कहाँ अठखेलियाँ, लाला कहाँ गुलडंडियाँ; उर उछलते पगडंडियाँ, मन विचरते कर डाँडिया ! सोचों बँधे मोचों रुँधे, रहमों करम पर हैं पले; आत्मा खुली पूरी कहाँ, वे समझ पाए रब […] Read more » अलहदा हो अलविदा कहना ! चुपचाप सा सुनसान सा ! त्रिलोकी का लोक चलना ! सुगबुगाहट झनझनाहट ! है गाँठ कोई पुरातन !