कविता निहितार्थों का समुद्र October 24, 2012 / October 24, 2012 by प्रवीण गुगनानी | 1 Comment on निहितार्थों का समुद्र बहते संबंधों की जलधार में कहीं कुछ था जो अछूता सा था ह्रदय की गहराइयों में नहीं डूब पाया था वो और न ही छू पाया था उन अंतर्तम जलधाराओं को जो बहते चल रही थी मन के समानांतर. मन करता था चर्चाएं तुमसे पता है. पता है यह भी कि शिलाओं पर लिखे जा […] Read more » निहितार्थों का समुद्र