कविता
मैं हैरां हूं, परेशां हूं, मैं मां तेरी…
/ by अरुण तिवारी
मैं हैरां हूं, परेशां हूं, मैं मां तेरी… ग़ज़ब मूरख है तू प्रानी, चाहता है अमन अपना, सेहत धन चमन अपना, कहता है मां जिसको, करता है मलीं उसको, बांधता मां गले बेड़ी, ये नादानी, ये मनमानी, न जीने देगी कल तुझको, मैं हैरां हूं, परेशां हूं, मैं मां तेरी….. नसों से खींच सब पानी, […]
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