कविता पिता प्रेम October 19, 2014 by रोहित श्रीवास्तव | Leave a Comment “पिता की महिमा” का कैसे करूँ बखान ….. असमर्थ हो गई “शब्दो की व्याकरण” न कर पाए वो भी जिसका गुणगान ……. वो “शक्तिरूपी” पिता-सबसे-महान जिसकी उंगली पकड़ कर मैंने चलना सीखा जब जब ठोकर से गिरा…. वो बड़ी तीर्वता से चीखा समा लेता था मुझे समेट के अपनी बाहों मे कैसे बयां करू […] Read more » पिता प्रेम