कविता पीड़ा March 30, 2015 / April 4, 2015 by कुलदीप प्रजापति | Leave a Comment कभी किट बन, कभी बीज बन आती हैं पीड़ा कभी बरसात बन के सीने पर करती हैं क्रीड़ा है प्रकृति तुमने ये कैसा तांडव मचा दिया तेरे अजब इस खेल ने जीवन तबाह किया था जो कुछ पास में सब कुछ तो हार बैठा हूँ क्यों सितम किया इतना मैं भी तो तेरा बेटा हूँ […] Read more » Featured कुलदीप प्रजापति पीड़ा