कविता प्रकृति की मौलिकता January 11, 2014 / January 11, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment दो-दो फुट दिन में जुड़वा दें, दो फुट की बढ़वा दें रात| किसी तरह से क्यों न बापू, बड़े-बड़े कर दें दिन रात| छोटे-छोटे दिन होते हैं, छोटी-छोटी होती रात| ना हम चंदा से मिल पाते, ना सूरज से होती बात| नहीं जान पाते हैं अम्मा, क्या होती तारों की जात| ना ही हमें पता […] Read more » poem प्रकृति की मौलिकता