कविता साहित्य प्रष्फुटित चित्त है हुआ जब से ! April 10, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment प्रष्फुटित चित्त है हुआ जब से, महत महका किया है अन्तस से; अहम् विकसित हुआ किया चुप से, शिशु सृष्टि को निरखता उर से ! चाहता द्रश्य हर लखे झट से, किए विचरण तके प्रकृति पट से; दृष्टि आकाश अग्नि जड़ ताके, बना सम्बन्ध जीव जग समझे ! ललक ले समझे भाषा लय मुद्रा, बोलता […] Read more » प्रष्फुटित चित्त है हुआ जब से !