कविता साहित्य प्रेम भी अपरिपक्व होने लगा है………. August 28, 2016 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment अर्पण जैन ‘अविचल’ स्त्री की देह तालाब-सी है, बिल्कुल ठहरी हुई सी उसमे नदी के मानिंद वेग और चंचलता कुछ नहीं फिर भी पुरुष उस तालाब में ही प्रेम खोजता है, सत्य है क़ि खोज की भाषा भी सिमट-सी गई हैं वेग का आवरण भी कभी कुंठा के आलोक में तो कभी पाश्चात्य के स्वर […] Read more » Featured प्रेम भी अपरिपक्व होने लगा है