कविता साहित्य बादलों पर गीतों के टुकड़े July 2, 2013 by प्रवीण गुगनानी | 1 Comment on बादलों पर गीतों के टुकड़े नहीं होती बात जब कुछ कहने को मैं यूँ ही कोई गीत गुनगुना देता हूँ । बादल अक्सर उड़ते हुए यहाँ वहाँ पकड़ लेते हैं मेरे गीतों के टुकडों को और बैठा लेते है अपने ऊपर । बादलों को अच्छा लगता होगा गीतों को लेकर उड़ना शायद उन्हें भी पता होगा कि इससे कुछ […] Read more » बादलों पर गीतों के टुकड़े