व्यंग्य
बाबा बाबा रे बाबा
/ by अनुज अग्रवाल
अनुज अग्रवाल आज कल बाबा विकृति का पर्याय हैं। बेसिरपैर के संस्कारों, रीति रिवाजों, अंधविश्वासों, मान्यताओं और परम्पराओं में जकड़े भारतीय जनमानस चाहे वो हिन्दू हो, मुसलमान, सिख या ईसाई, इनका सामना जब भी धर्म गुरुओं से होता है तो अधिकांश पैसे के लालची, यौन पिपासु, महत्वाकांक्षी, बड़ी-बड़ी जमीनों के मालिक, प्रपंची और दलाल की […]
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