कविता बिना कसूर के April 17, 2019 / April 17, 2019 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment मेरे घर पर लोग आये हैं, बहुत दूर से ,दूर से। चाचा आये चपड़ गंज से, मामा चिकमंगलूर से। चाचा चमचम लाये,मामा, लड्डू मोती चूर के। मैंने लड्डू चमचम देखे, बस थोडा सा घूर के। मुझको माँ की डाँट पड़ गई, यूं ही बिना कसूर के। Read more » बिना कसूर के