मेरे घर पर लोग आये हैं,
बहुत दूर से ,दूर से।
चाचा आये चपड़ गंज से,
मामा चिकमंगलूर से।
चाचा चमचम लाये,मामा,
लड्डू मोती चूर के।
मैंने लड्डू चमचम देखे,
बस थोडा सा घूर के।
मुझको माँ की डाँट पड़ गई,
यूं ही बिना कसूर के।
मेरे घर पर लोग आये हैं,
बहुत दूर से ,दूर से।
चाचा आये चपड़ गंज से,
मामा चिकमंगलूर से।
चाचा चमचम लाये,मामा,
लड्डू मोती चूर के।
मैंने लड्डू चमचम देखे,
बस थोडा सा घूर के।
मुझको माँ की डाँट पड़ गई,
यूं ही बिना कसूर के।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।