कविता ब्रह्मनाद और स्मृतियाँ March 8, 2013 / March 8, 2013 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment एक शिरा दो धमनियां तीन स्पंदन इन सभी का एक छोटा सा बुलबुला और तुम्हारें मेरें प्यार के बड़े होते संसार में बची कुछ अनुभूतियाँ. जिजीविषा के साथ जीवन को जी लेती स्मृतियां और इन सभी के सान्निध्य को लिए कहीं दूर से होते, आते, पुकारतें आकाश गंगा के जैसे अनवरत, अक्षुण्ण, अनाकार, अनंत ब्रह्मनाद. […] Read more » ब्रह्मनाद और स्मृतियाँ