कविता मनमोहक है July 23, 2013 / July 23, 2013 by डा.राज सक्सेना | 4 Comments on मनमोहक है डा.राज सक्सेना अभिशाप बुढापा कभी न था,यह तो गरिमा का पोषक है | आनन्द इसी में जीने का,यह शिखर रूप का द्योतक है | क्यों रखें अपेक्षा औरों से, अब तक भी तो हम जीते थे | हम कुंआ खोदते […] Read more » मनमोहक है